राची, झारखण्ड | झारखण्ड | जून | 21, 2021 :: गर्भ से बाहर आते ही शिशु स्वतंत्र जीव होता है । जीवन रक्षा के लिए उसे पहली बार श्वास लेनी पड़ती है ।
पहली श्वसन क्रिया में उसे जो कष्ट और पीड़ा होती है, उसकी अभिव्यक्ति शिशु के प्रथम रुदन में सुनी जाती हैं।
सांस लेने और छोड़ने का यह अनवरत क्रम मृत्यु पर्यंत चलता रहता है ।
सांस का चलना ही जीवन की पहचान है । सांस का रुक जाना मृत्यु है ।
वायुमंडल में अनेक प्रकार के गैस, धुआं, पानी की वाष्प आदि सूक्ष्म कण पाए जाते हैं।
इनमें से 15 - 20% ऑक्सीजन गैस होती है, यही प्राणवायु रक्त में मिलकर पूरे शरीर में दौड़ जाती है।
रक्त हमारे प्रत्येक भाग तक पहुंचकर पोषक तत्व तथा उर्जा पहुंचाता है ।
श्वास नलिका वाला मार्ग दो श्वास नलिकाओं में विभाजित होकर सूक्ष्म नलिकाओं द्वारा दोनों फेफड़ों में वायु पहुंचाता है ।
दोनों फेफड़ों में लगभग 65 करोड प्रकोष्ठ होते हैं ।
यदि इन सब को भरा जाए तो साढे छ
लीटर आयतन की वायु इसमें समा सकती हैं।
उसके वायु में ऑक्सीजन का विच्छेदन तथा और अवशोषण किया जाता।
वायुमंडल में ऑक्सीजन की पूर्ति करते रहने की व्यवस्था प्रकृति में वृक्षों तथा सूर्य को सौंपी है ।
सूर्य की रोशनी तथा ताप पाकर वृक्षों के पत्ते कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं तथा ऑक्सीजन को छोड़ते हैं।
पीपल, नीम, तुलसी और बङ के पेड़ 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ते हैं ।
अतः श्वास रोगियों को इन वृक्षों के नीचे प्रतिदिन आधा घंटा बैठकर गहरी श्वास भरनी चाहिए ।
इस प्रकार किसी व्यक्ति द्वारा सांस लेने और छोड़ने की जो क्रिया होती है वह श्वसन क्रिया कहलाती है।
यदि मनुष्य को सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया मे गड़बड़ी होती है तो उसे कई तरह की बीमारियां जकड़ लेती है । शरीर की श्वास क्रियाओं को निरंतर चलाने के लिए प्राणायम करने की आवश्यकता होती है ।
यदि व्यक्ति प्रतिदिन 10 मिनट निरंतर प्राणायम करें तो श्वास संबंधी कोई भी समस्या उस व्यक्ति को नहीं आ सकती है।
प्रतिदिन व्यक्ति को अपने शरीर के श्वसन प्रक्रिया को निरंतर चलाने के लिए ताड़ासन, विरासन, त्रिकोण आसन, वज्रासन, सूर्य नमस्कार, गोमुखासन, पवनमुक्तासन तथा प्राणायम में कपालभाति, भस्त्रिका, नाड़ी शोधन, सूर्यभेदी, चंद्रभेदी आदि करके श्वसन क्रिया को सुचारु रुप से स्वस्थ और तंदुरुस्त रखा जा सकता है ।
प्राणायम करते समय श्वास नली, फेफड़ो और पेट में जो हलचल होती है, उससे शरीर के भीतर और बाहर कंपन - अकंपन उत्पन्न होती है ।
इन कम्पन का शरीर के भीतर भागों पर आश्चर्यजनक प्रभाव आसानी से अनुभव किया जा सकता है।
इस प्रभाव व अनुभव को संवेदना भी कहा जा सकता है।
सही श्वसन क्रिया में एक बार में 24 सेकंड लगते हैं ।
इस प्रकार 1 मिनट में कुल ढाई बार ही श्वसन क्रिया हो सकेगा ।
हम एक मिनट में 16 से 18 बार श्वास लेकर छोड़ देते हैं, इस जल्दी बाजी के कारण ना तो शरीर की आवश्यकताओं की समुचित पूर्ती हो पाती है और ना ही शरीर ठीक से शुद्ध हो पाता है ।
योगिक विधि से श्वास लेने वाला व्यक्ति, सामान्य श्वास लेने वालों द्वारा 1 घंटे में लिए जाने वाली ऑक्सीजन के बराबरी, सिर्फ 1 मिनट में ही कर लेता है ।
इस तरह 24 या 25 योगिक श्वसन भरकर सामान्य व्यक्ति से दो गुना लाभ सहज ही उठाया जा सकता है।
यदि हम श्वास की समस्या है तो हमें यह पता करना चाहिए की श्वास की समस्या से छुटकारा पाने के लिए कौन सा प्राणायाम करने की आवश्यकता है
जब हम उदर प्राणायम करते हैं तब हो गहरी श्वास लेते हैं और श्वास पेट के अंदर तक ले जाते हैं ।
तब फेफड़े में अधिक मात्रा में वायु चली जाती हैं, जिससे हमारी तो श्वास लेने की क्रिया ठीक हो जाती है।
मनुष्य को अपना जीवन लंबे समय तक जीने के लिए श्वसन क्रिया की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है।
मनुष्य के श्वसन क्रिया की जो गति होती है, उसी गति से मनुष्य की आयु निर्धारित होती है ।
श्वसन क्रिया का हमारे शरीर के अंदर एक केंद्र होता है जो फेफड़ों में श्वसन क्रिया के माध्यम से एक बार में तकरीबन 3 से 4 लीटर वायु हमारे फेफड़ों मे जाती है
हरेन्द्र कुमार प्रजापति
इंस्ट्रक्टर डिवाइन योगा एकेडमी
Enail : hari.prajapati@gmail.com